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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

अध्याय - 7

परामर्श के प्रकार

(Types of Counselling)

प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।

अथवा
परामर्श प्रदान करने की प्रविधियों के अर्थ को बताते हुए निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों एवं पदों तथा गुणों और अवगुणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

परामर्श की प्रविधियाँ या प्रकार

परामर्श की मुख्य रूप से तीन प्रविधियाँ हैं। ये तीन प्रविधियाँ या सिद्धान्त इस बात पर आधारित हैं कि अधिक महत्त्व परामर्शदाता को दिया जाए या परामर्श प्रार्थी को दिया जाए। परामर्श की ये तीन विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं-

(1) निर्देशीय परामर्श
(3) समन्वित परामर्श
(2) अनिर्देशीय परामर्श

 

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(1) निर्देशीय परामर्श - इस विचारधारा या प्रविधि के प्रवर्तक विलियम्सन हैं। इस प्रकार के परामर्श को परामर्शदाता केन्द्रित परामर्श भी कहा जाता है। इसमें परामर्शदाता को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है और परामर्श प्रार्थी को गौण स्थान प्राप्त होता है। इस पद्धति में परामर्श-प्रार्थी की समस्या का समाधान करने का उत्तरदायित्व परामर्शदाता का होता है। परामर्शदाता ही परामर्श प्रार्थी की समस्याओं को प्राप्त करता है, उनका हल निकालता है, उनके कारणों के बारे में जानकारी प्राप्त करता है, निदान करता है और अन्त में परामर्श-प्रार्थी को उपचारात्मक निर्देश देता है। अतः इस प्रकार के परामर्श के अन्तर्गत परामर्शदाता परामर्श प्रार्थी का पूर्णरूप से मार्गदर्शन करता है।

निर्देशीय परामर्श की धारणाएँ विलि एण्ड एन्ड्र ने -  निर्देशीय परामर्श की निम्नलिखित धारणाएँ बताई हैं-

(i) परामर्शदाता अधिक योग्य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी होने के फलस्वरूप समाधान के लिए अच्छी सलाह दे सकता है।
(ii) सूचनाओं के बिना परामर्श चाहने वाला समस्या का समाधान किसी सहायता के बिना नहीं कर सकता।
(iii) परामर्शदाता परामर्श की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है और परामर्श-प्रार्थी उसकी अपेक्षाकृत कम क्रियाशील होता है।
(iv) परामर्श प्रक्रिया में निर्णय तो परामर्शदाता ही लेता है, परन्तु परामर्शदाता वह सब कुछ करता है जिन पर परामर्श प्रार्थी स्वयं निर्णय न ले सके। परामर्शदाता सोचने, वर्णन, निष्कर्ष एवं सलाह आदि के द्वारा यह प्रयत्न करता है कि परामर्श-प्रार्थी को बताया जा सके जिससे कि वह अपनी समस्या का समाधान कर सके।

निर्देशीय परामर्श के चरण या सोपान - निर्देशीय परामर्श के लिए विलियम्सन और डार्ल ने निम्नलिखित चरण या सोपान बतलाए हैं-

(i) संश्लेषण - आधार सामग्री का कार्यान्त्रिक तथा आकृतिक संगठन करके उनका संश्लेषण करना।
(ii) विश्लेषण - छात्रों के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने तथा उनको भली-भाँति समझने के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों द्वारा आँकड़े इकट्ठे करके उनका विश्लेषण करना।
(iii) निदान - इस चरण में परामर्श लेने वाले की समस्या के मूल कारणों को खोजना होता है तथा साथ ही छात्र द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली समस्याओं की प्रकृति और कारणों को सूत्र रूप में वर्णन करना होता है।
(iv) फलानुमान - इस चरण के अन्तर्गत छात्र की भावी समस्याओं की सम्भावना को ज्ञात करके फलानुमान करना होता है।
(v) परामर्श - प्रार्थी - परामर्श प्रार्थी के समायोजन एवं पुनर्समायोजन के लिए प्रयास करना।
(vi) अनुवर्तन - इस अन्तिम चरण में परामर्श के प्रभाव का मूल्यांकन करना होता है।

निर्देशीय परामर्श के लाभ - निर्देशीय परामर्श के निम्नलिखित लाभ हैं-

(i) इस प्रकार के परामर्श में समय बहुत कम लगता है।
(ii) इस परामर्श में समस्या पर अधिक बल दिए जाने के कारण समस्या को भली-भांति समझा जा सकता है।
(iii) यह परामर्श बालक के व्यक्तित्व के संवेगात्मक पक्ष की अपेक्षा बौद्धिक पक्ष पर अधिक बल देता है। अतः बौद्धिक स्तर पर समस्या का समाधान होने के कारण परामर्श के अधिक स्थायी और प्रभावपूर्ण होने की सम्भावना होती है।
(iv) निर्देशीय परामर्श में परीक्षणों और विधियों का प्रायेग सुगमता से किया जा सकता है।
(v) इस प्रकार का परामर्श मन्द-बुद्धि वाले बालकों के लिए अति उत्तम रहता है।

निर्देशीय परामर्श के दोष या कमियाँ - निर्देशीय परामर्श के दोष या कमियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) इस प्रकार के परामर्श में परामर्श प्राप्त करने वाला स्व-निर्देशन के योग्य नहीं हो पाता।
(ii) इस परामर्श में समस्या केन्द्रित होने के कारण परामर्श-प्रार्थी की अवहेलना रहती है।
(iii) इस परामर्श में परामर्श प्रार्थी परामर्शदाता पर अधिक निर्भर हो जाता है जिसके कारण उसकी मौलिकता कमजोर पड़ जाती है।
(iv) परामर्श-प्रार्थी के द्वारा इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग न लेने के कारण संवेगात्मक समस्याओं के समाधान करने में उस प्रकार का निर्देशन अधिक सफल नहीं हो पाता।
(v) इस प्रकार का परामर्श व्यावहारिक की अपेक्षा सैद्धान्तिक विवेचना पर अधिक आधारित है।
(vi) इस प्रकार के निर्देशन में परामर्शदाता परामर्श-प्रार्थी को भविष्य में गलतियाँ करने से बचा नहीं सकता।
(vii) निर्देशीय परामर्श के अन्तर्गत परामर्श- प्रार्थी से सम्बन्धित बहुत सी जानकारियों की परामर्शदाता के द्वारा अवहेलना हो जाती है।

(2) अनिर्देशीय परामर्श - इस विचारधारा के प्रवर्तक कार्ल रोजर्स हैं। इस प्रकार के परामर्श को परामर्श-प्रार्थी केन्द्रित परामर्श भी कहा जाता है। इस प्रकार के परामर्श के अन्तर्गत या परामर्श-प्रार्थी या परामर्श-प्राप्तकर्ता सक्रिय रूप से भाग लेता है और परामर्शदाता को गौण स्थान प्राप्त होता है। इस प्रकार के परामर्श में परामर्श - प्रार्थी ही ज्यादातर बोलता है और परामर्शदाता अधिकतर उदासीन रहता है और बहुत कम बोलता है। इसमें परामर्श-प्रार्थी अधिकतर अपनी समस्याओं का समाधान खुद करता है और उनकी पूर्ति के लिए स्वयं योजना बनाता है। इस प्रकार के परामर्श में परामर्शदाता कोई निर्णय नहीं लेता, बल्कि यह परामर्श-प्रार्थी में खुद अपने आप निर्णय लेने की क्षमता उत्पन्न करता है। अतः निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि अनिर्देशीय परामर्श में निर्णय लेना, योजना बनाना, उस योजना का अनुकरण करना आदि सभी प्रकार के कार्यों को सम्पादित करना परामर्श प्रार्थी के द्वारा ही किया जाता है।

अनिर्देशीय परामर्श की धारणाएँ - अनिर्देर्शीय परामर्श की निम्नलिखित धारणाएँ हैं-

(i) परामर्श चाहने वाले को अधिकतम सन्तोष प्राप्ति होनी चाहिए।
(ii) समस्या का समाधान परामर्श-प्रार्थी के जीवन के अनुकूल होना चाहिए।
(iii) परामर्श से सम्बन्धित अन्तिम निर्णय परामर्श प्रार्थी को ही लेना चाहिए।
(iv) परामर्शदाता को परामर्श प्रक्रिया के दौरान गौण ही रहना चाहिए।
(v) संवेगात्मक संघर्ष उचित समायोजन में एक बड़ी बाधा है।

अनिर्देशीय परामर्श के चरण या सोपान - रोजर्स ने अनिर्देशीय परामर्श के निम्नलिखित चरण या सोपान बतलाए हैं-

(i) व्यक्ति किसी कठिनाई का अनुभव करने के बाद स्वयं परामर्शदाता के पास आता है।
(ii) परामर्शदाता यह प्रदर्शित करता है कि वह परामर्श -प्रार्थी की समस्याओं का समाधान नहीं जानता, परन्तु वह उनका समाधान करने की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
(iii) परामर्शदाता मैत्रीपूर्ण ढंग से परामर्श-प्रार्थी को मुफ्त सहायता देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
(iv) परामर्शदाता परामर्श-प्रार्थी की भावनाओं को समझने का पूरा प्रयास करता है।
(v) स्वतंत्र अभिव्यक्ति के बाद व्यक्ति में धीरे-धीरे अन्तर्दृष्टि या सूझ का विकास होता है।
(vi) अन्त में परामर्श-प्रार्थी के अवरोध दूर हो जाते हैं, वह स्वयं को हल्का अनुभव करता है तथा अपने को निर्णय लेने तथा उन पर व्यवहार करने के योग्य मानने लगता है।
(vii) इस स्थिति में परामर्श-प्रार्थी और अधिक सहायता की आवश्यकता अनुभव नहीं करता और परामर्श की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

अनिर्देशीय परामर्श के लाभ - अनिर्देशीय परामर्श के निम्नलिखित लाभ हैं-

(i) इस परमार्श में कोई परीक्षण प्रयोग नहीं किए जाते। अतः इसमें कठिन परिश्रम नहीं करना पड़ता है।
(ii) इस प्रकार के निर्देशन और परामर्श का प्रभाव हमेशा के लिए स्थायी होता है।
(iii) अनिर्देशीय परामर्श एक धीमी परन्तु निश्चित प्रक्रिया है जो छात्र में समस्या को समाधान करने की योग्यता उत्पन्न करती है।
(iv) इस निर्देशन के द्वारा समस्याएँ अवचेतन स्तर से मिलकर चेतना स्तर तक उभर आती हैं।

अनिर्देशीय परामर्श की कमियाँ या दोषअनिर्देशीय परामर्श की निम्नलिखित कमियाँ या दोष हैं-
(i) यह एक धीमी प्रक्रिया है तथा इसमें समय अधिक लगता है।
(ii) ये परामर्श स्कूलों के लिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि परामर्शदाता को बहुत से छात्रों की . समस्याओं को देखना पड़ता है।
(iii) इस परामर्श के द्वारा बालक पूर्णतः निर्णय लेने के योग्य नहीं हो पाते।
(iv) वैयक्तिक सम्पर्क स्थापित हो जाने के कारण कुछ छात्रों का परामर्शदाता की ओर अधिक झुकाव हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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